बलराज साहनी |
कभी सोवियत संघ के एक मशहूर निर्माता ने कहा था कि
‘बलराज साहनी के चेहरे पर एक पूरी दुनिया दिखाई देती है.’
बलराज साहनी ने उसके कुछ दिनों बाद ही आनन्द बाजार पत्रिका में लिखा कि
"यह ‘पूरी दुनिया’ उस रिक्शेवाले की थी और शर्म की बात यह है कि आजादी के 25 साल बाद भी वह चेहरा नहीं बदला है."
विभाजन की दिवारों में चिन दिए गये दिली हर्फों को महसूस कर चुके बलराज साहनी के व्यक्तित्व को समझने के लिए यह लाइनें काफी हैं. लेकिन फिल्म ‘दो बिघा जमीन’ का यह रिक्शेवाला जो अपने संजीदा अभिनय से भारतीय दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ चुका था केवल अभिनेता ही नहीं रहा, उन्होने जिन्दगी के कोरस पर कथाकार, शिक्षक, रंगकर्मी, संस्मरण और यात्रा-लेखक की भुमिका भी बखूबी निभाई.
विभाजन पर आधारित एमएस सथ्यू की मशहूर फिल्म गर्म हवा की चर्चित आखिरी पंक्ति ‘इंसान कब तक अकेला जी सकता है’ किसी और की नहीं, बल्कि फिल्म के मुख्य अभिनेता बलराज साहनी की ही रची हुई थी. 1973 की इस प्रसिद्ध फिल्म के साथ ही यह वर्ष ‘काबुलीवाला’ और ‘धरती के लाल’ जैसी प्रसिद्ध फिल्मों के अभिनेता बलराज साहनी की जन्मशती का वर्ष भी है. दुर्भाग्यवश साहनी की मौत फिल्म गर्म हवा की डबिंग खत्म करने के अगले ही दिन हो गई थी. इस कारण वे कभी गर्म हवा देख नहीं सके.
बलराज साहनी ने 1913 में रावलपिंडी(अब पाकिस्तान में) के एक मध्यमवर्गीय व्यवसायिक परिवार में जन्म लिया था. लेकिन उनकी प्रतिभा ने उन्हे इतिहास के पन्नों में मील का पत्थर बना के दर्ज कर दिया. लाहौर से अंग्रेजी में एमए करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गये और पिता के व्यापार में उनका हाथ बंटाने लगे. 1930 के अंत मे बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़कर रवीन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन पहुंचें जहां बलराज साहनी अंग्रेजी के शिक्षक नियुक्त हो गये.
1938 में कुछ समय बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया. इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बी.बी.सी के हिन्दी उदघोषक के रूप में इग्लैंड में नियुक्ति मिल गयी. लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह 1943 में भारत लौट और इप्टा (इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसियेशन) ज्वाइन कर लिया. इप्टा में वर्ष 1946 में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक ‘इंसाफ’ में अभिनय करने का मौका मिला. इसके साथ ही ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फिल्म ‘धरती के लाल’ में भी बलराज साहनी ने बतौर अभिनेता काम किया.
इप्टा से जुडे रहने के कारण बलराज साहनी को कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा. उन्हें अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचारों के कारण जेल भी जाना पडा. उन दिनों वह फिल्म ‘हलचल’ की शूटिंग में व्यस्त थे और निर्माता के आग्रह पर विशेष व्यवस्था के तहत फिल्म की शूटिंग किया करते थे. शूटिंग खत्म होने के बाद वापस जेल चले जाते थे. वर्ष 1953 मे बिमल राय के निर्देशन मे बनी फिल्म दो बीघा जमीन बलराज साहनी के कैरियर में अहम पड़ाव साबित हुई. इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने एक रिक्शावाले के किरदार को जीवंत कर दिया. रिक्शावाले को फिल्मी पर्दे पर साकार करने के लिये बलराज साहनी ने कलकत्ता की सड़को पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया और रिक्शेवालों की जिंदगी को जिया. वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘काबुलीवाला’ में भी बलराज साहनी ने अपने संजीदा अभिनय से दर्शको को भावविभोर कर दिया. उनका मानना था कि पर्दे पर किसी किरदार को साकार करने के पहले उस किरदार के बारे मे पूरी तरह से जानकारी हासिल की जानी चाहिये. इसीलिये वह बम्बई में एक काबुलीवाले के घर; लगभग एक महीने तक रहे.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलराज साहनी अभिनय के साथ-साथ लिखने में भी काफी रूचि रखते थे. वर्ष 1960 में अपने पाकिस्तानी दौरे के बाद उन्होंने ‘मेरा पाकिस्तानी सफरनामा.’ और वर्ष 1969 में तत्कालीन सोवियत संघ के दौरे के बाद ‘मेरा रूसी सफरनामा’ किताब लिखी. बलराज साहनी ने ‘मेरी फिल्मी आत्मकथा’ किताब के माध्यम से लोगों को खुद से रूबरू भी कराया. सदाबहार अभिनेता देवानंद निर्मित फिल्म ‘बाजी’ की पटकथा भी बलराज साहनी ने ही लिखी थी. बलराज साहनी के उल्लेखनीय फिल्मों को याद करते हुए कुछ और भी नाम गिनाये जा सकते हैं जैसे हमलोग, गरम कोट, सीमा, वक्त, कठपुतली, लाजवंती, सोने की चिडिया, घर-संसार, सट्टा बाजार, भाभी की चूडि़या, हकीकत, दो रास्ते, एक फूल दो माली, मेरे हमसफर आदि.
वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘लाल बत्ती’ का निर्देशन भी बलराज साहनी ने किया था. निर्देशक एम.एस.सथ्यू की वर्ष 1973 मे प्रदर्शित ‘गर्म हवा’ बलराज साहनी की फिल्मो में से सबसे अधिक याद की जाने वाली कृतियों में से एक रही है. विभाजन के दौर में भारतीय मुसलमानो के पाकिस्तान पलायन की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में बलराज साहनी केन्द्रीय भूमिका में हैं. इस फिल्म में उन्होंने जूता कारखाना चलाने वाले एक रईस मगर परेशान कारोबाारी की भूमिका अदा की है. जिसे यह फैसला लेना है कि वह हिन्दुस्तान में रहे अथवा नये बने पाकिस्तान की ओर पलायन कर जाये. अगर दो बीघा जमीन को छोड दे तो बलराज साहनी के फिल्मी कैरियर की सबसे बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्म गर्म हवा ही रही. जिसने उन्हे सदियों के लिए अमर कर दिया.
13 अप्रैल 1973 के दिन अपने संजीदा अभिनय से आंखों को नम कर देने वाले इस कलाकार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन ता-जीन्दगी इस संजीदा कलाकार की सामाजिक सोच पर महत्वाकांक्षा कभी न हावी हो पायी. शायद इसलिए ही उन्होने कभी ‘अभिनय का बाजार’ बनने की नहीं सोची. तभी उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता के आगे फिल्मी दुनिया की चमक-दमक बौने साबित हुए. और वे अकेले ही जिम्मेदार राहों के हमराही बने रहे.
-अमृत सागर
(2013 में बनारस फिल्म फेस्टिवल के ब्रोसर के लिए लिखा गया लेख )
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