शुक्रवार, 27 जून 2014

चला गया वो! जो कहता था; यारी है ईमान, मेरी यार, मेरी ज़िन्दगी...

अरे बरखुरदार!
कभी अल्फाजों को भी बरखुरदार! सा बना अपना लेने वाले प्राण नहीं रहे। नहीं रहा वह चरित्र अभिनेता जिसने सिनेमा के परदे को डॉयलाग बोलने की तमीज़ और अक़्लमंदी दी। भाषा के परिधान में लिपटी ज़ुबान! खुलते ही कैसे पहचान ली जाती है....यह प्राण की संवाद अदायगी से जाना जा सकता है। प्राण साहब! का गेटअप, मेकअप, चाल-ढाल, उठने-बैठने और चहलकदमी के तौर-तरीके सब लाजवाब थे। नकल नहीं। दुहराव नहीं। बनावटीपन का किनारा या झोल नहीं। 

उनके मन ने शौक पाला था फोटोग्राफरी का। बने फिल्म के चरित्र अभिनेता। धाकड़ खलनायक। बेजोड़ अदाकार। 1949 में ‘जिद्दी’ और ‘बड़ी बहन’ फिल्मों में उनकी भूमिका खलनायकी की जमी। सराही गई। 1956 में मीना कुमारी के साथ ‘हलाकू’ फिल्म में हलाकू डाकू की भूमिका से छा गए। फिर दिखें प्राण साहब फ़िल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में राका डाकू के रूप में। शम्मी कपूर की लगभग सभी फिल्मों में वे नकारात्मक भूमिका में रहे और लोगों के मन में पैठते चले गये। ‘उपकार’ फिल्म ने उनकी भूमिका का ‘फ्लेवर’ बदल दिया। इस फिल्म में प्राण साहब! ने मलंग बाबा की यादगार और अद्भुत चरित्र-अभिनेता की भूमिका अदा की। 1967 में आई इस फिल्म का गाना पूरे देश में लोकप्रिय रहा जो आज भी बड़े शान से ट्युन होता है-‘कस्में वादें प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या...!’

अरे साईं! 
प्राण साहब! ने अमिताभ बच्चन के साथ ग़जब की जोड़ीदारी निभाई। फिल्म ‘जंजीर’ में, शेरखान के चरित्र को उन्होंने निभाया क्या! मानो जी रहें हों। वे उसमें जब दिल से डूबकर गाते हैं तो फ़िल्मी परदे का सीना चौड़ा हो जाता है- ‘‘यारी है ईमान, मेरी यार, मेरी ज़िन्दगी... अमिताभ बच्चन को प्राण साहब! की और प्राण साहब को अमिताभ की, मानो लत लग गई। 'जंजीर' के बाद ‘डॉन, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘शराबी’....एक के बाद एक बनती गई, फिल्मी परदे पर टंगती गई...और प्राण साहब! सबमें सप्राण अपनी अदाकारी का लाजवाब करतब दिखाते चले गए।

1940 में आई मोहम्द अली की पंजाबी फिल्म ‘यमला जाट’ से अपनी फिल्मी कैरियर शुरू करने वाले प्राण साहब! ने आज जब अंतिम सांस ली है तो उनके फिल्मी यात्रा में शामिल फिल्मों की संख्या करीब चार सौ हो चुकी है। इस घड़ी जब पूरे देश में उन्हें श्रद्धाजंली देने की रवायत चल रही है, मेरा आपको उनकी फिल्मों का नाम गिनाना नागवार गुजर सकता है। अतः मैं यह कहूँ कि प्राण साहब ने ‘छलिया’, ‘काश्मीर की कली’, ‘दो बदन’,:जॉनी मेरा नाम’, ‘गुड्डी’, ‘परिचय’, ‘विक्टोरिया नं. 203’, ‘बाबी’, ‘नौकर बीवी का’, ‘कर्ज’, ‘नसीब’ जैसी सैकड़ों फिल्में बनाई है.......इससे अच्छा है कि आप उनकी फिल्म ‘धर्मा’ का यह गीत गुनगुनाए....‘राज को राज रहने दो.....,
दादा साहब फाल्के सम्मान के घोषणा के बाद  प्राण साहब!

मेरी ओर से प्राण कृष्ण सिकन्द को ‘सैल्यूट’ जिसने अपनी अदाकारी से बीते वर्षों में भारतीय सिनेमा की दुनिया में अनगिनत नायकों-महानायकों को शिकस्त दी है....पटखनी खिलायी है...आज वे सभी प्राण साहब! के दुनिया को अलविदा कह जाने पर रो रहे होंगे....बरखुरदार! 

-राजीव रंजन प्रसाद

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